Madhu varma

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लेखनी कविता -पंचभूत - काका हाथरसी

पंचभूत / काका हाथरसी 


भाँड़, भतीजा, भानजा, भौजाई, भूपाल
 पंचभूत की छूत से, बच व्यापार सम्हाल
 बच व्यापार सम्हाल, बड़े नाज़ुक ये नाते
 इनको दिया उधार, समझ ले बट्टे खाते
‘काका ' परम प्रबल है इनकी पाचन शक्ती
 जब माँगोगे, तभी झाड़ने लगें दुलत्ती

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